क्या है इलेक्टरल बॉन्ड? और क्यु हो रहा है बंद

क्या है इलेक्टरल बॉन्ड? और क्यु हो रहा है बंद

सप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉण्ड को रद्द कर दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया है. इलेक्टोरल बॉण्ड राजनीतिक पार्टियों के चंदे का बड़ा सोर्स था. इस स्कीम को 2018 में लाया गया था. लेकिन अब इसे निरस्त कर दिया गया है। 

क्या है इलेक्टरल बॉन्ड? और क्यु हो रहा है बंद

SC Verdict on Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉण्ड इसलिए लाए गए थे, ताकि राजनीतिक पार्टियों की फ़ंडिंग जुटाने के तरीक़े में पारदर्शिता लाई जा सके. लेकिन Supreme court ने इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम को असंवैधानिक क़रार देते हुए रद्द कर दिया है. supreme court ने कहा कि इलेक्टोरल बॉण्ड को गोपनीय रखना संविधान के अनुच्छेद 19(1) और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। 

चीफ जस्टिस डिवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली इस बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बिआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. बेंच ने कहा, लोगों को यह जानने का अधिकार है की राजनीतिक पार्टियों का पैसा कहां से आता है और कहां जाता है।

इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम 2018 में लाया गया था. हालांकि 2019 में ही इसकी व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई थी. तीन याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम के खिलाफ याचिका दायर की थी. वहीं केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा था कि इसे सिर्फ वेदधन की ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है. साथही सरकार ने गोपनीयता पर दलील दी थी कि दाता की पहचान छुपाने का मकसद उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिशोध से बचाना है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक आफ इंडिया को तुरंत चुनावी बॉन्ड जारी करने से रोकने का आदेश दिया है. साथ ही 12 अप्रैल 2019 से आज तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने को भी कहा है।

अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है। तो जानते हैं कि यह होते क्या है? और इससे पार्टियों को कितना कमाई होती थी।

क्या है इलेक्टरल बॉन्ड?

साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बांड स्कीम की घोषणा की थी. इस 29 जनवरी 2018 से कानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि, इलेक्टोरल बांड स्कीम चुनावी चंदे में साफ सुथरा धन लाने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लाई गई है।

इसके तहत स्टेट बैंक आफ इंडिया की 29 ब्रांचो से अलग-अलग रकम के बांड जारी किए जाते हैं, उनकी रकम ₹1000 से लेकर एक करोड रुपए तक होती है, इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है,

योजना के तहत, इलेक्टरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीने में जारी होते हैं. हालांकी इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काम से कम एक फ़ीसदी वोट मिले हो।

इससे कितना कमाती है पार्टियां?

तिलक तोरल बंद की वैधता को चुनौती देने वालों में एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म भी शामिल थी, अदर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बांड के जरिए 16492 करोड रुपए से ज्यादा का चंदा मिला है।

चुनाव आयोग में दाखिल 2022- 2024 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को 1294 करोड रुपए से ज्यादा का चंदा इलेक्टरल बॉन्ड के जरिए मिला. जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड रुपए रही यानी बीजेपी की कुल कमाई में 40 फिसडीह हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा।

सबसे ज्यादा चुनावी बांड बीजेपी को

इलेक्टरल बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ी चिताओं में से एक यह भी थी कि इससे सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को होता है और वह इसका अनुचित फायदा उठाती है।

आंकड़े भी इस बात की गवाही देती है,  एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2017- 2018 से 2021-2022 के बीच भाजपा को इलेक्टोरल बांड के जरिए 5271 करोड रुपए का चंदा मिला, सबसे ज्यादा चंदा उसे 2019 से 2020 में मिला था. वह चुनावी साल था और तब बीजेपी को 2555 करोड रुपए का चंदा इलेक्टोरल बांड से आया था.

विधानसभा चुनाव के वक्त भी परियों की फील्डिंग बढ़ जाती है इससे ऐसे समझे कि पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव हुए थे उसे साल सत्ताधारी पार्टी टीएमसी को 528 करोड रुपए से ज्यादा की फंडिंग इलेक्टोरल बॉन्ड से आई थी।

अब क्या है विकल्प?

जब चुनावी बंद नहीं होते थे, तब पार्टियों को चेक से चंदा दिया जाता था, चंदा देने वाले का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों को चुनाव आयोग को देनी होती थी.

वही लगभग चार दशक पहले परियों के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और लोगों से चंदा वसूलते थे.

इलेक्टरल बॉन्ड रद्द हो जाने के बाद परिटीयो के पास और भी रास्ते हैं जहां से वह कमाई कर सकती हैं. इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है, इसके अलावा कॉरपोरेट डोनेशन से भी परियों की कमाई होती है इससे बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं।

महंगे होते जा रहे हैं चुनाव

एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान साथ राष्ट्रीय पार्टियों को साढे पांच हजार करोड रुपए से ज्यादा का फंड मिला था, इन पार्टियों ने 2000 करोड रुपए से ज्यादा खर्च किया था.

2019 में बीजेपी को 4,057 करोड रुपए की फंडिंग मिली थी. इसमें से उसने 1142 करोड रुपए खर्च किए थे जबकि कांग्रेस को 11067 करोड रुपए का फंड मिला था जिसमें से उसने 626 करोड रुपए खर्च किए थे।

क्या है इलेक्टरल बॉन्ड

इसके तहत स्टेट बैंक आफ इंडिया की 29 ब्रांचो से अलग-अलग रकम के बांड जारी किए जाते हैं, उनकी रकम ₹1000 से लेकर एक करोड रुपए तक होती है, इसे कोई भी खरीद सकता है और अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है,

योजना के तहत, इलेक्टरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीने में जारी होते हैं. हालांकी इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा उन्हीं राजनीतिक पार्टियों को दिया जा सकता था, जिन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काम से कम एक फ़ीसदी वोट मिले हो।

इससे कितना कमाती है पार्टियां?

तिलक तोरल बंद की वैधता को चुनौती देने वालों में एक एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म भी शामिल थी, अदर का दावा है कि मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बांड के जरिए 16492 करोड रुपए से ज्यादा का चंदा मिला है।

चुनाव आयोग में दाखिल 2022- 2024 के लिए ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी को 1294 करोड रुपए से ज्यादा का चंदा इलेक्टरल बॉन्ड के जरिए मिला. जबकि, उसकी कुल कमाई 2,360 करोड रुपए रही यानी बीजेपी की कुल कमाई में 40 फिसडीह हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड का रहा।

सबसे ज्यादा चुनावी बांड बीजेपी को

इलेक्टरल बॉन्ड को लेकर सबसे बड़ी चिताओं में से एक यह भी थी कि इससे सबसे ज्यादा फायदा सत्ताधारी पार्टी को होता है और वह इसका अनुचित फायदा उठाती है।

आंकड़े भी इस बात की गवाही देती है,  एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2017- 2018 से 2021-2022 के बीच भाजपा को इलेक्टोरल बांड के जरिए 5271 करोड रुपए का चंदा मिला, सबसे ज्यादा चंदा उसे 2019 से 2020 में मिला था. वह चुनावी साल था और तब बीजेपी को 2555 करोड रुपए का चंदा इलेक्टोरल बांड से आया था.

विधानसभा चुनाव के वक्त भी परियों की फील्डिंग बढ़ जाती है इससे ऐसे समझे कि पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा चुनाव हुए थे उसे साल सत्ताधारी पार्टी टीएमसी को 528 करोड रुपए से ज्यादा की फंडिंग इलेक्टोरल बॉन्ड से आई थी।

अब क्या है विकल्प?

जब चुनावी बंद नहीं होते थे, तब पार्टियों को चेक से चंदा दिया जाता था, चंदा देने वाले का नाम और रकम की जानकारी पार्टियों को चुनाव आयोग को देनी होती थी.

वही लगभग चार दशक पहले परियों के पास एक रसीद बुक हुआ करती थी. इस बुक को लेकर कार्यकर्ता घर-घर जाते थे और लोगों से चंदा वसूलते थे.

इलेक्टरल बॉन्ड रद्द हो जाने के बाद परिटीयो के पास और भी रास्ते हैं जहां से वह कमाई कर सकती हैं. इनमें डोनेशन, क्राउड फंडिंग और मेंबरशिप से आने वाली रकम शामिल है, इसके अलावा कॉरपोरेट डोनेशन से भी परियों की कमाई होती है इससे बड़े कारोबारी पार्टियों को डोनेशन देते हैं।

महंगे होते जा रहे हैं चुनाव

एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान साथ राष्ट्रीय पार्टियों को साढे पांच हजार करोड रुपए से ज्यादा का फंड मिला था, इन पार्टियों ने 2000 करोड रुपए से ज्यादा खर्च किया था.

2019 में बीजेपी को 4,057 करोड रुपए की फंडिंग मिली थी. इसमें से उसने 1142 करोड रुपए खर्च किए थे जबकि कांग्रेस को 11067 करोड रुपए का फंड मिला था जिसमें से उसने 626 करोड रुपए खर्च किए थे।

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